Swati Khatri

Broken or Beautiful

Is it broken?
Is broken beautiful?

The story goes as,

A Long time ago in the Muromachi period of Japan. Ashikaga Yoshimitsu a shogun of Japan; broke a bowl he got from China. Being immensely in love with the bowl he sent it for repair to the country. But was horrified to look at the condition in which the bowl came back. It was put together with metal clamps, giving it a hideous look. Still not ready to give up on the bowl. He gave it to the artisans of Japan to find a better way to join the broken pieces. He wanted to keep its aesthetics alive. And as the artisans succeeded in doing their work right, the concept of kintsugi was born.

Kintsugi- The art of repairing with gold.

Kin = golden

 Tsugi = joinery

Thus, the art of repairing broken ceramics with gold was born. And if we as human beings tend to look at it closely, we also see that it’s a metaphor for life. About finding beauty in the old rustic or the slightly torn. Maybe those flaws are no longer flaws if they grew up to be filled in gold. Will it be right to say that it is about creating something more beautiful than was initially lost?

It may mean different things to different people 

  • For some, it may mean repairing the damage.
  • Or Understanding the non-permanent state of this world.
  • For some it is minimalism.
  • For a few it may mean, a pause.
  • Or just embracing the flaws.

It can also mean a personal touch

Everything has a story and every story gives meaning to that thing at a deeper level. Maybe you don’t want to discard that torn dress because your mother gifted it to you. Yes, it has a story and a very beautiful one. It can’t be just discarded by the imperfections on the surface. So, the philosophy emphasises on preserving the story rather than erasing it.

Embrace what comes with the imperfect

It may also mean that the imperfect is better. Just like ageing in beautiful. Yes, a person is growing old but they are also growing wiser.
There is a certain beauty in the face that is wrinkled and eyes that have seen it all. So many things come with the imperfect. The book you just read has folded pages in it. But those folded pages mean you are a book wiser now.

Repair requires transformation

One more thing to see here is that everything looks different after repair because every repair is unique it will be as per the cracks on that ceramic. Similarly, when humans repair their damages, each human will have to fill in their own cracks. And every crack will be different. The gold one pours in can take any direction depending upon the direction of the crack. Yes, we all heal differently because we all were broken different.

It’s still not easy to sum up this concept. Maybe, nothing is actually ever broken, or we can say everything is destined to be broken. It’s just about what you choose to fix those cracks with.
And you can always choose to fill those cracks with gold!

तुम कौन हो

हमारी इन बातो में,
इन बढ़ती हुई मुलाक़ातों में।
अक्सर सोचती हूँ,
कि तुम, मेरे कौन हो?

क्या तुम मेरे तसव्वुर का ख्याल हो?
या किसी सवाल का जवाब हो?
क्या तुम एक अधपका सा रिश्ता हो?
या मेरा ही प्यारा सा एक हिस्सा हो?

मैं कहूँगी नहीं पर तुमने महसूस किया होगा,
मेरी झुकी नज़रो में,
मेरी उस हलकी सी मुस्कान में।
कि मुझे पसंद आने लगी हे तुम्हारी खुशबू,
तुम्हारी छोटी छोटी आदते,
और
और वो, जिस तरह तुम्हारी नज़र मुझपर आकर रूक जाती हे।


सच कहूँ तो,
तुम वो हो जो मेरे चेहरे पर मुस्कान लाता है,
तुम वो हो जिसे मैं खोना नहीं चाहती।
तुम वो हो जिसे मेरी आँखे ढूंढ़ती रहती है,
और तुम वो भी हो जिसकी ख्वाहिश मैं हर पल करती हूँ।

अच्छा सुनो, अरे सुनो ना!
तुम्हें कैसे पता मुझे सड़क क्रॉस करने से डर लगता हे?
जो तुमने उस दिन मेरा हाथ कस के थाम लिया था।
उस दिन तुमने कहा था प्यार छुपाना भी प्यार है,
तुम्हारी हँसी कहती है ये ही तुम्हारा अंदाज़ है।


हाँ हमारी इन बातो में,
इन बढ़ती हुई मुलाक़ातों में।
अक्सर सोचती हूँ,
कि तुम, मेरे कौन हो?

क्या तुम ज़िन्दगी की फ़िक्र हो?
या फिर मीठा सा कोई ज़िक्र हो?
तुम मेरी खुशियों का इज़ाफ़ा हो?
या फिर उससे भी कुछ ज़्यादा हो?

मैं कहूँगी नहीं पर तुमने महसूस किया होगा,
मेरी उस बदली हुई सी आवाज़ में,
और कभी कभी वाली उस तकरार में।
मुझे पसंद है तुम्हारी वो आँखे,
तुम्हारी बाते,
और
और वो जिस तरह तुम अपनी मुस्कान से एहसास बयां कर देते हो।


तुम वो हो जिसके होने पर याकीन नहीं होता,
तुम वो हो जिसके होने से खुद पर नाज़ हो जाता हे।
तुम वो हो जिसे देखते हुए मेरा मन नहीं भरती,
वो जिसके इंतज़ार में वक़्त नहीं कटता।

अच्छा सुनो, सुनो ना!
तुम्हें किसने बताया की मुझे रातो को नींद नहीं आती?
जो उस रात तुमने घंटो शायरी सुनाई।
तुमने कहा था न, तुम्हें मैं पीले लिबास में अच्छि लगती हूँ?
तब से पीला मनो मेरा पसंदिता रंग हो गया हो।


हाँ हमारी इन बातो में,
इन बढ़ती हुई मुलाक़ातों में।
अक्सर सोचती हूँ,
कि तुम, मेरे कौन हो?

पर जब कोई जवाब न मिला तो सोचा,
कि क्या ज़रूरी है कि मुझे ये पता हो कि तुम मेरे कौन हो।
या ज़रूरी सिर्फ इतना हे की तुम मेरे हो,
हा ज़रूरी तो सिर्फ इतना हे की तुम मेरे हो।


अब चाहे तुम ताबीर हो।
तक़दीर हो,
या फिर मेरे हाथो की लकीर हो।
चाहे एतबार हो।
इज़हार हो,
या ख़तम हुआ कोई इंतज़ार हो।

चाहे तुम सफर हो।
सब्र हो,
या मेरी ज़िन्दगी का सबब हो।

चाहे जन्नत हो।
मिन्नत हो,
या पूरी हुई एक मन्नत हो।


अब सवाल नहीं पूछूँगी,
बस सजदे में सर झुका कर
तुम्हारे होने का शुक्र करूंगी,
क्यूंकि ज़रूरी सिर्फ इतना हे कि तुम हो।
हाँ ज़रूरी सिर्फ इतना हे कि तुम हो।

कार की फ्रंट सीट का प्यार

वो मेरा शर्माना,
तुम्हारा कुछ गुनगुनाना।
हमारा नज़रे मिलाना,
और फिर छट से नज़रे चुराना।

वो पल, कुछ प्यार भरे,
कुछ इकरार भरे।
कुछ ऐसे पल जिनमे नाज़कीयां तो थी,
पर दूरी का इल्म भी था।

तुमने मेरी हथेली को थाम लिया था,
और मेने भी महसूस किया था,
तुम्हारी उँगलियों की छुअन को।
जब तुमने मेरी कलाई को अपनी और खीचा।
तब लगा जैसे, जेसे ये फासले अब मिट ही जाएंगे।
पर कम्बख्त,
कम्बख्त वो हैंडब्रेक।

उस पल में दूरी तो इतनी थी न कि,
सी. पी. से सिविल लाइन्स तक,
ड्राइव करके भी वो पूरी न हो पायी।
लगा की जैसे दिल्ली की सड़को से भी ज़्यादा लम्बी हे वो दूरियां

बस फिर क्या था।
कुछ दबे हुए से अरमान,
कुछ खिले हुए से दिल।
कुछ उलझी हुई सी साँसे,
और सुलगते हुए हम दोनों।
—————————————————————————————————-

उस एक पल में कुर्बत का एहसास खास था,
तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ था।
तुम्हारी हर छुअन जैसे इबादत,
और तुम्हारा हर शब्द जैसे बेशुमार चाहत।

उन दूरियों की नज़दीकियां,
नज़दीकियों की वो दूरियां।
हमारा साथ जैसे, कुदरत की एक खूबसूरत कहानी,
पर वो दूरी जैसे कुदरत कर रही हो कोई मनमानी।

जब तुम शरारत से मेरे करीब आये,
और तुमने मेरे कान में हलके से कुछ फुसफुसाया।
मेने महसूस किया था तुम्हारी साँसों को,
उस वक़्त उन होठो से मिलने को बेताब थे मेरे भी होठ।
लगा की प्यार अब परवान चढ़ ही जाएगा।
पर कम्भख्त,
कम्बख्त वो सीट बेल्ट।

उस पल में दूरी दूरी तो इतनी थी न कि,
उसे कम करने की हरबराहट में
तुमने सिग्नल भी स्किप कर दिया।
उस पल लगा कि दिल्ली की सड़को से भी ज़्यादा लम्बी हे वो दूरियां

बस फिर क्या था।
कुछ दबे हुए से अरमान,
कुछ खिले हुए से दिल।
कुछ उलझी हुई सी साँसे,
और सुलगते हुए हम दोनों।

———————————————————-

अच्छा सुनो न, सुनो
हा तुमसे बोल रही हूँ, सुनो
वो तुम्हारी कार की फ्रंट सीट पे न
में कुछ छोड़ आयी ही
में अपना दिल तेरी और मोड़ आयी हु

मुझे ये फ्रंट सीट का प्यार बहुत अधूरा सा लगा,
मुझे इस प्यार में और कुछ भी चाहिए।

मुझे मेरी हर कविता में तेरा एहसास चाहिए,
तेरे दिन का पहला ख्याल चाहिए।
तेरी शामो की मुलाकात चाहिए,
तेरी रातो का साथ चाहिए।
वो जिसका ज़िक्र न कर सके हम किसी से,
मुझे ऐसी भी मुलाक़ात चाहिए।
वो जिसका ज़िक्र न कर सके हम किसी से,
मुझे ऐसी भी मुलाक़ात चाहिए।
मुझे तू चाहिए।
मुझे तू चाहिए,

पर कया था न
उस दिन हमारे हिस्से बस वो दूरियां ही आयी

और रह गया क्या
कुछ दबे हुए से अरमान,
कुछ खिले हुए से दिल।
कुछ उलझी हुई सी साँसे,
और सुलगते हुए हम दोनों।

कम्बख्त,
वो कर की फ्रंट सीट वाला प्यार।
कम्बख्त ।

मैं ये तो नहीं कहूँगी

मैं, ये तो नहीं कहूँगी कि मुझे तुमसे प्यार हे,
पर मेरे मन में कहीं एक एहसास हे।
या फिर यूं कहूँ कि प्यार के एहसास का अघास हे,
या शायद, ये उस एहसास के अघास का कोई अंदाज़ हे।

अभी एहसास हे पर पायाब हे,
अभी जज़्बात तो हे पर कुछ अलग बात हे।
अभी मुलाक़ाते होनी हे,
बहुत सी बाते होनी हे।
अभी बहुत सी तकरारे बाकि हे,
उन के बाद के करार होने बाकि हे।

सुनो जल्दी नहीं हे,
गहरे रिश्तो को बनने में वक़्त लगता हे।
सपने बुनने में, और उन्हें पूरा होने में वक़्त लगता हे।

अभी तो बहुत सी बाते करनी हे।
एक दुसरे के शब्दों के साथ साथ,
एक दुसरे की ख़ामोशी भी समझनी हे।
अभी तुम्हारी निगाहो में गहरायी से झांकना हे।
उन आँखों की मुस्कान के साथ,
उनका दर्द भी पहचानना हे।

हां सुनो जल्दी नहीं हे क्योंकि
एहसास को प्यार में बदलने में वक़्त लगता हे।
चाहतो को दिल में उतरने में वक़्त लगता हे,

पर हा अगर तुम्हारे मन में भी कहीं कोई एहसास हे,
या फिर सिर्फ उस एहसास का आग़ाज़ हे।
या फिर उस एहसास के आगाज़ का कोई अंदाज़ हे,

 

तो मुझे बता देना।
और अगर बता न सको तो जता देना.
कुछ कह सको तो कह देना,
कुछ कह न सको तो इशारा कर देना।
जो भी हो जैसे भी हो,
मुझे कुछ तो बता देना।

 

 

 

मैं लिखूंगी तुम्हें

मैं लिखूंगी तुम्हें,
लिखती ही रहूँगी।
पेड़ से टूटे हुए एक पत्ते पर लिखूंगी,
आसमान में तैरते हुए उस बादल पर लिखूंगी।

जब ज़िंदगी की शाम आएगी,
किसी धुंदले से चेहरे को देख तुम्हारी याद आएगी।
एक दिन यूँ ही कही बैठे हुए,
अपनी किताब के एक पन्ने पर लिखूंगी तुम्हारा नाम।

मैं लिखूंगी तुम्हें।
लिखती ही रहूँगी।

कभी किसी दिन समुद्र किनारे,
रेत में अक्षरों को बना कर।
बिना लहरों की परवाह किए,
लिख डालूंगी हमारी कहानी।

मैं लिखूंगी तुम्हें,
लिखती ही रहूँगी।
किसी दिन बादल में लिखूंगी,
किसी दिन धूप में लिखूंगी।

किसी रात को,
जब चांद लगा होगा अपनी ही उधेड़ बुन में।
उसकी खूबसूरती का कुछ नूर अपने शब्दों में मिलाकर,
उस पहर में लिखूंगी हमारी कहानी।

मैं लिखूंगी तुम्हें।
लिखती ही रहूँगी।

कभी यू ही बारिश के महीने में,
खिड़की से मौसम को निहारते वक़्त ।
वहा पड़ी उन बूंदो को सहला कर,
उस खिड़की के शीशे पर लिखूंगी तुम्हारा नाम।

मैं लिखूंगी तुम्हें,
लिखती ही रहूँगी।
कभी खुशबू में लिखूंगी,
कभी ख्वाहिश में लिखूंगी।

 

मैं लिखूंगी तुम्हें,
लिखती ही रहूँगी।
हाँ, मैं लिखूंगी तुम्हें,
लिखती ही रहूँगी।

 

 

तुम आओगे ना?

ज़िन्दगी नीरस शब्दों सी है,
तुम अलंकार लेते आना।
ज़िन्दगी अचर एक शंख सी है,
तुम आके इसकी गूंज बन जाना।

ज़िन्दगी थकी पलकों सी लगती है,
तुम नींद साथ लाना।
ज़िन्दगी थमे वक़्त सी भी है,
तुम रफ़्तार लेते आना ।

ज़िन्दगी सरोद की बिखरी तारों सी है,
तुम इसका सुर समेट देना।
ज़िन्दगी कोरे कागज़ सी लगती है,
तुम एहसास साथ लाना।

ज़िन्दगी रात के अँधेरे सी है,
तुम ख्वाब लेते आना।
ज़िन्दगी दर्द सी भी लगती हे,
तुम इसकी दवा ही बन जाना।


तुम आओगे ना?
पता नहीं तुम कैसे होगे?
सीधी भाषा में बात करने वाले,
या मेरी तरह अलंकार में बोलने वाले।

सरल शब्दों में कहूँ तो।
ज़िंदगी फीकी चाय सी है,
तुम इलायची लेते आना।
तुम आ ज़रूर जाना।

पर क्या पता तुम्हें चाय पसंद ही न हो,
इसे और सरल बना के कहूँ तो।
ज़िन्दगी कड़वी कॉफ़ी सी हे,
तुम चॉकलेट पाउडर लेते आना।

जो भी हो।
तुम आओगे ना?
तुम बस आ ज़रूर जाना।
तुम आ ज़रूर जाना।

इस बार

चलो इस बार यूं टूट के प्यार करे हम,
कि इस प्यार में न तुम टूटो न मैं।
ये नज़दीकियां कुछ यूं बढ़ाये,
कि इस एहसास में न तुम बिखरो न मैं।

 

हाँ मिले तो हे हम ज़िन्दगी में थोड़ी देर से,
पर क्यों न जान ले हम एक दुसरे को और करीब से।
जानती हूँ तुमने पहले भी प्यार को परखा हे,
केसा हो अगर उस परख की परत हमारे बीच न आने पाए।

 

चलो इस बार यूं टूट के प्यार करे हम,
कि इस प्यार में न तुम टूटो न मैं।
चलो हम साथ में यूं कदम बढ़ाऐ,
कि इस राह में न तुम भटको न में।

The Drink

“But see people are enjoying here,” Sanjana said in an attempt to coax Khushi to have a drink. “I am not able to hold both the glasses. At least hold one of these,” she said while moving her hand towards her friend in an attempt to make her hold the drink.

All Khushi could say while taking the drink in her hand was, “according to me they are just creating noise pollution and dancing at their stupidities. Trust me they are stupid.”
“Oh come on, don’t be a spoilsport,” Sanjana defended.

“Hey, let me use the ladies room,” said Sanjana and abruptly walked away from the dance floor.

“Sanjana, I hope you spiked her drink,” asked a rouge voice as she stood there, next to the ladies room.
“Yes.”
“That’s your cash, you may leave now.”
Sanjana’s eyes lit up as she saw so many currency notes in front of her.
“Thank you, she said while offering him the drink she had been holding in her hand for some time now.”

Sanjana quickly went into the ladies room and made a phone call.
“You, spiked his drink?” Asked a voice on the other side of the phone.
“Yes.”
“Great, now let’s get out of here. Didn’t I tell you, people here are stupid?”

 

 

Advice to My Younger Self

Advice to My Younger Self

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I think I need some advice today. But then, I feel I don’t have anyone to look up to for that. Yet I feel I have learned a lot from my past. So, my younger self needs to look up to me today for advice. But then she can’t because I can’t go back in the past 😊. Oh, the ironies of life.

Still I will jot down some points that I have learned in my journey and I think I need to remember for my journey ahead.

Who knows a few years from now I will come back to this page and look for the advice my younger self gave to her younger self?

Maybe the advice will still stay valid.

Maybe not.

Who knows?

 

Don’t be afraid to take decisions.

Even if something goes wrong,

remember bad decisions are part of a good life.

 

Don’t take people for their face value.

Don’t decide too soon.

 

Even if you are scared.

Do it anyway.

 

Don’t be afraid to feel what you feel is right.

Even if it doesn’t feel right to those around you.

 

vo suufī kā qaul ho yā panDit kā gyaan,

jitnī biite aap par utnā hī sach maan.

Nida Fazli

 

Write a lot even if it’s not going to be published

It’s for you first then anyone else.

 

Think less.

Overthinking will only make things worse.

 

Take care of your health

You have to live in your body till the time you are here.

How can you be careless?

 

When a friend decides to unfriend you,

don’t try to change their decision.

This can do more harm than good.

I am not talking about social media; I am talking about real life.

 

If someone for no reason started being mean to you.

Ignoring you, giving you silent treatment, belittling you.

Trust me you are better off without them.

Yes, even if they are your closest pals.

 

If something or someone doesn’t feel right.

They are not right.

 

Don’t explain yourself to others.

If you think there’s someone whom you have to explain often.

Run away, they will make your life hell.

 

If someone tells you that they love you.

But that can’t be seen in their actions.

They don’t love you, accept it.

 

If you see those red flags in your date.

Leave them there itself.

Don’t even think of another date,

phone call, Instagram like etc.

 

Don’t give them so many chances.

Those chances can be dangerous

once they have betrayed you, they can do that again.

 

 

Be kind.

But don’t forget yourself too.

You are as important to the world.

Banaras-Ki-Gali

बनारस की गली



 

मैं, वो गली नहीं बनारस की,
जहां से तू बस यू ही मुड़ जाए।
मैं तो वो हूँ, जहाँ तू अक्सर लौट के आए,
जहाँ, तू, अक्सर लौट के आए।

 

मैं, महक नहीं उस इत्र की,
जो एक कोने में सिमट जाए ।
मैं तो खुशबू हूँ उस बारिश की जो समां में बिखर जाए।

 

मैं, वो लहर, नहीं हूँ नदी की,
जो तुझे छू कर वापस हो जाए।
पर वो उठती तरंग हूँ, जो तुझे शीतल कर जाए ।
मैं, वो शब्द नहीं,
जो किसी कागज़ पर गुम जाए।
मैं वो लफ्ज़ हूँ, जो महफ़िल की ग़ज़ल सजाए।
मैं, वो सपना नही,
जो नींद से उठ कर, भुला दिआ जाए।
मैं वो सपना हूँ जो, मन में अक्सर दोहराया जाए ।

 

मैं, वो किरण नहीं हूँ सूरज की,
जो यूं ही कहीं खो जाए ।
वो रौशनी हूँ जो इंद्रधनुष बन बिखर जाए।

 

मैं अधूरी नही ज़रूरी हू,
मैं ग़ज़ल का वो शब्द हूँ।
मैं शब्द का जज़्बात हूँ,
मैं जज़्बात की वो बात हूँ।

 

मैं कहानी का वो मोड़ हूँ,
मैं मोड़ का वो छोर हूँ।
मैं छोर का एक शोर हूँ।
मैं वो गली हूं बनारस की,
जहा, तू अक्सर लौट के आए ।
जहा, तू अक्सर लौट के आए ।

 

मैं कल्पना नहीं,
किरदार नहीं,
ख्याल नहीं,
मैं फैसला हूँ।
मैं कोई होड़ नही,
Dor nahi
mod नहीं,
मैं दौर हूँ।

 

मैं कविता नहीं,
कहानी नहीं,
अफसाना नहीं,
मैं संग्रह हूँ।
मैं, वो गली हूं बनारस की,
जहां तू अक्सर  लौट के आए ।
जहां तू अक्सर  लौट के आए।
 
मैं, बारिश की वो बूँद नहीं,
जो समुद्र में कहीं घुल जाए ।
मैं, हूँ वो बूँद जो सीप का मोती बन निखर जाए ।

 

मैं दिन का वो शोर नहीं,
जो भीड़ में खो जाए।
मैं तो वो नज़्म हूँ जो तू देर रात गुनगुनाए ।
मैं वो नींद का झोंका नहीं,
जो तुझे चौका कर चला जाए ।
पर सुबह की वो झपकी हूँ जो मीठा एहसास दिलाए।

 

मैं सुई नहीं हूँ घड़ी की,
जो  वक़्त के साथ हिल जाए ।
मैं तो ठहराव हूँ चकोर का जो चाँद को निहारता रह जाए।
 
मैं नुक्कड़ पे सुना कोई किस्सा नहीं,
जिसे तू यूं ही भूल जाए।
मैं तो वो सच हूँ जो तेरा हिस्सा बन जाए।
मैं कोई तारीख़ नहीं,
कि दिन के साथ बदल जाए ।
मैं wo तक़दीर हूँ जो बस तेरी हो कर रह जाए ।

 

मैं इकरार हू इंतज़ार का,
मैं वक़्त  का  एतबार हूँ।
मैं  सुर हूँ एक कव्वाल का,
मैं गुनगुनाती शाम हूँ।

 

मैं  ख्याल हूं बेखयाली  का,
मैं शोर हूं सन्नाटो का।
मैं सब्र हूँ रफ़्तार का,
मैं वो गली हूं बनारस की,
जहा तू अक्सर लौट के आए ।
जहा तू अक्सर लौट के आए ।

 

मैं आस नहीं,
सोच नहीं,
वादा  नहीं,
मैं करार  हूँ।

 

मैं शब्द नहीं,
शोर नहीं,
आवाज़ नहीं,
मैं साज़ हूँ।

 

मैं मोड़ नही,
बाज़ार नहीं,
किनारा नहीं,
मैं ठहराव हूँ।

 

मैं वो गली हूं बनारस की,
जहां तू अक्सर  लौट के आए ।
जहां तू अक्सर  लौट के आए।

 

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