यह कहानी शुरू होती है जापान के शोगन, आशिकागा योशिमासा से। जो कि जापान के  मुरोमाछी काल में रहते थे। तो कहानी कुछ इस तरह है कि एक दिन उनसे उनका प्रिय मिटटी का पात्र टूट गया। और उसे ठीक करने के लिए उन्होने चीन भेज दिया। पर जब वह वापस आया, उस पात्र की व्यथा देख कर वह परेशान हो गए। उसे जोड़ने के लिए मेटल के टुकड़ो का इस्तेमाल किआ गया था, जिस वजह से वह बहुत भद्दा दिख रहा था।

पर जैसे कि उन्हें वह पात्र बहुत पसंद था, उन्होंने उसे जापान के कारीगरों को इस उम्मीद से सौंप दिया कि वो उसे जोड़ने का एक बेहतर तरीका ढून्ढ पाएंगे। और वो कारीगर अपने काम में सफल भी रहे, उन्होंने उस पात्र की दरारे पिघले हुए सोने से भर दी। अब वह और भी ख़ूबसूरत हो गया था। और वही से किनत्सूगी की शुरुआत हुई।

किनत्सूगी, जिसका मतलब होता हे- सोने से जोड़ना। किन मतलब सोना और त्सूगी मतलब जोड़ना।

किनत्सूगी, वाबी साबी के दृष्टिकोण को बहुत अच्छे से दर्शाता है। तो क्या है यह दृष्टिकोण? ध्यान से विचार किआ जाए तो इसमें ज़िन्दगी की गहराई झलकती है। शायद इस चीज़ का हर एक के लिए एक अलग मतलब है। किसी के लिए कहानी, किसी के लिए ख़ूबसूरती तो  किसी के लिए समझदारी।

कहानी

हर चीज़ की एक कहानी होती है और वह कहानी ही उस चीज़ को खास बनाती है। वह पुरानी शर्ट जिसपे चाय के दाग है पर फिर भी तुम उसे फेंकना नहीं चाहते। शायद इसलिए  कि वो दाग उस दिन लगे थे जिस दिन तुम अपने खास दोस्तो के साथ बाहर गए थे।  तो इसका एक मतलब ये हुआ कि त्रुटिपूर्ण चीज़ भी खास है, क्युकी वह त्रुटि ही उस चीज़ को उसका मतलब देती हे।

समझदारी

या फिर वाबी साबी का मतलब हुआ समझदारी। तो क्या ये कहना सही होगा की वह बूढी महिला जिसके चेहरे पर झुर्रियां है, वो झुर्रियां उसे और खूबसूरत बनाती है। हाँ उस इंसान की त्वचा ढलक रही है पर इसके साथ साथ, वो झुरियां ये भी तो दर्शाती हे कि उसे ज़िन्दगी का तजुर्बा है।  उन झुर्रियों वाले चेहरे में  एक ख़ूबसूरती है, उस समझदारी की ख़ूबसूरती जो वक्त के साथ आई है।  तो क्या, इम्परफ़ेक्शन के साथ खूबसूरती भी आती है? वह किताब जो तुम कल पढ रहे थे है, आज उसमे कुछ मुड़े हुए पन्ने है। पर इसका एक मतलब ये भी तो हुआ कि आज तुम एक किताब ज़्यादा जानते हो।

बदलाव को अपनाना

यह भी हो सकता हे इस दृष्टिकोण का मतलब बदलाव को अपनाना हो। अक्सर चीज़े ठीक होने की प्रक्रिया में बदल जाती हे। क्यूँकी हर रिपेयर यानि की ठीक करने की प्रक्रिया  अलग होती हे। किनत्सूगी वह प्रक्रिया है जो कमियों को सोने से भरने पर ध्यान देती है। एक पात्र की दरारो को भरने के लिए उसमें डाला हुआ सोना कौन सी दिशा लेगा यह  सिर्फ उन दरारो  पर निर्भर करता हे। इसी तरह हम सब भी अलग अलग तरह से खुद की दरारों को भरते है क्यूँकी हम सब भी तो अलग अलग तरह से ही खंडित है।

और  हम या कोई भी चीज़। दरारों के भरने के बाद  कया बन कर निखर जाए ये कोई नहीं जानता। ये सिर्फ इस बात पर निर्भर करता है कि  हम अपनी कमियों को किस चीज़ से भरते हे। aur अगर हम कमियों को सोने से ही भर दे,  तो वो कमियां, कमियां ही न रहे। क्या ये कहना सही होगा की इस तरह से हम उस चीज़ को और ज़्यादा खूबसूरत बना सकते हे। उससे भी ज़्यादा खूबसूरत जेसे कि  वह पहले थी। देखा जाए तो इस विचार को समझना बहुत मुश्किल है।  क्या पता इसका मतलब ये है कि किसी में कोई कमी ही नहीं है, या  फिर यह की कमी तो इस संसार की हर चीज़ में है।

दृष्टिकोण

वाबी साबी का मतलब अभी भी स्पष्ट नहीं हुआ। ये वो दृष्टिकोण हे जिसका हर इंसान अपनी परिस्तिथि के हिसाब से मतलब निकाल सकता है। किसी के लिए ये सिर्फ कमियों को भरने की एक प्रक्रिया है। किसी के लिए ये ज़िन्दगी के क्षणिक भाव को दर्शाता है। कुछ लोग इसे मिनिमलिस्म यानी न्यूनतमवाद को दर्शाने का रूपक मानते है।  कुछ के लिए यह दौड़ धूप की ज़िन्दगी के बीच एक ठराव का सन्देश है।

पर हाँ इस विचार का मतलब समझ आऐ ना आऐ, हमें ये ज़रूर समझ लेना चाहिए की हम सब अपनी अपनी कमियों को भर सकते है। हाँ, वो भी सोने से।

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