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उस दिन ईमेल चेक करते वक़्त मेरे मन में एक ख्याल आया। यह ईमेल बॉक्स भी बिलकुल ज़िन्दगी जैसा ही तो है। नहीं मैं यह नहीं कह रही की उसे देखकर मेरी ज़िन्दगी के बारे में आप सब जान सकते है। मेरा मतलब है कि जिस तरह से वह काम करता है, वो ज़िन्दगी जैसा ही तो है।
एक आम दिन, वो मुझे सब आम काम करने में मदद करता है। जैसे की मेरे बिल्स पेय करना, या टू-डू लिस्ट बनाना। वो मुझे सूचित करता है, जब-जब मेरे बैंक अकाउंट से पैसे डेबिट होते है। इस तरह से देखा जाए तो वो मेरा असिस्टेंट है। पर जब मैंने और ध्यान से सोचा तो मुझे लगा कि इसकी ये प्रक्रिया ज़िन्दगी की गहराई को दर्शाती है। अब आप कहेंगे वो कैसे। बताती हु, पढ़ते रहिये।
सतह पर सब ठीक ही दिखता है
हाँ ज़िन्दगी की तरह ,इनबॉक्स में भी सतह पर सब ठीक ही दिखता है । वो सारी इमेल्स को अलग अलग कैटेगरी में बांट देता है। जैसे की प्राइमरी, प्रमोशन और स्पैम। यह काम वह बहुत अच्छे से करता है। प्रमोशन वाली ईमेल प्रमोशन में ही जाती है, स्पैम वाली स्पैम में ही।
और हाँ पता नहीं उसे कैसे पता चलता है, पर ज़रूरी इमेल्स को वो इम्पोर्टेन्ट मार्क कर ही देता है। उस दिन उस इंटरव्यू कॉल का ईमेल बस यूँ ही इम्पोर्टेन्ट मार्क कर दिया था उसने। पता नही कैसे। तो देखा जाए तो सब परफेक्ट ही तो है। इतना परफेक्ट जितनी परफेक्ट लाइफ का लोग इंस्टाग्राम पर दिखावा करते हैं। लगता है उसके एल्गोरिथ्म इतने अच्छे से काम करते हैं कि कुछ गलत हो ही नहीं सकता।
जब सब ठीक चल रहा हो, कुछ न कुछ गड़बड़ ज़रूर होती है
ज़िंदगई की तरह यहाँ भी कुछ न कुछ हो ही जाता है। तो जब मैं सोचती हु वो तो परफेक्ट है, वो
मेरी एक ज़रूरी ईमेल को स्पैम में भेज देता है। इतना समझदार होकर भी, इतनी सी बात नहीं समझ पाता कि वो ईमेल मेरी सीनियर ने भेजी है। और सबसे बड़ी बात यह है कि ये सब उस दिन होता हे जिस दिन मुझे अपने इनबॉक्स पे इतना भरोसा होता है की मैं स्पैम फोल्डर चेक ही नहीं करती।
पर फिर ज़िन्दगी में भी तो यही होता है। जब सब ठीक ही चल रहा हो, एक इतनी छोटी सी गड़बड़ हमें परेशान कर देती है । पता है सबसे बुरा क्या है, हम रूटीन से इतने कम्फर्टेबले हो चुके होते हैं कि हम उस पर कोई संदेह भी नहीं करते।
हमारे लिए सही क्या है, ये सिर्फ हम जानते हैं
हा अब चाहे वो हमारी ईमेल को जिस भी फोल्डर में डाल दे। वह ईमेल हमारे लिए सही है या नहीं ये सिर्फ हम ही जानते हैं। बिलकुल ज़िन्दगी की तरह। अब हमारे लिए सही क्या है या हमारी ज़िन्दगी में क्या चल रहा हे, ये हम से बेहतर और कौन जानेगा।
तो जब “सैमी 2023” मुझे मिलियन डॉलर भेजना चाहता है और वो ईमेल प्राइमरी कैटेगरी में आ भी जाती है तो मुझे क्या करना चाहिए। देखा जाए तो १ मिलियन डॉलर से ज़्यादा ज़रूरी और क्या होगा। पर सैमी दुनिया के दूसरे कोने से मुझे इतने पैसे क्यों भेजना चाहता है?
तो ईमेल चाहे किसी भी केटेगरी में आए, ये सिर्फ मैं ही जानती हु कि मेरे लिए सही क्या है। बिलकुल वैसे ही जैसे ज़िन्दगी में सलाह देने के लिए तो हज़ार लोग मिल जाते हे पर वो सिर्फ हम ही जानते हे की हमारे लिए क्या सही हैं। और हाँ अगर सामने वाले की सलाह गूगल के एल्गोरिथ्म की तरह पूरे एनालिसिस के बाद आये, तब भी।
और हां सबसे ज़रूरी बात
एक चीज़ और है जो वो मुझे रह रह के याद दिलाता है। वो एहसास दिलाता रहता हे की मुझे सिर्फ ज़रूरी चीज़ो से ही अपनी ज़िन्दगी को भरना है। हा, जब वो कहता है डिलीट द क्लटर ऑर पाय फॉर इट, (delete the clutter or pay for it.)