एक पल का हिसाब,
एक लम्हा एक साल।
बहुत ढूंढा इस वक़्त का मतलब,
पर बुझी नहीं हमारी तलब।
पहले लगा वक़्त को समझ पाए तो अच्छा होगा,
फिर लगा थोड़ा वक़्त और मिल जाए तो कैसा होगा।
बस ये वक़्त बे वक़्त ऐसा वक़्त दिखता है,
कि वक़्त की गहराईयों को ये मन समझना चाहता है।
पर हम यू ही वक़्त की गहराईयों को समझते रहे,
वक़्त का ही वक़्त बर्बाद करते रहे।
अगर ये वक़्त बीत गया तो वक़्त कहा से लायेंगे,
इस दिन का हिसाब कहा से पायेंगे।
इस वक़्त से और वक़्त मत मांग,
ये वक़्त नही देता किसी को मान।
ये तो आज है कल नही,
अब मान ले जो हे वही सही।
जब उधार का वक़्त खत्म होगा तो वक़्त कहा से लाएंगे,
वक़्त के उधार की वो किश्त किस वक़्त से चुकाएगे।
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सच में समय बहुत कुछ सीखा देता है और दिखा देता है। बहुत सुंदर कविता है। मन को छू गया।
Thank you for reading, always.
🙂